डॉ. रामबली मिश्र
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हरिहरपुरी की कुण्डलिया
सत्ता पाने के लिये, मानव है बेचैन।
भयाक्रांत नेता सभी, रोते हैं दिन-रैन।।
रोते हैं दिन-रैन, सुखद क्षणभंगुर खातिर।
ऐंठे सत्तासीन,बहुत हो जाते शातिर।।
कहें मिसिर कविराय, तभी हिलता है पत्ता।
चाबुक ले कर हाथ, चलाती जब भी सत्ता।।
Abhilasha deshpande
12-Jan-2023 05:11 PM
Beautiful
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अदिति झा
12-Jan-2023 04:18 PM
Nice 👍🏼
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Abhilasha deshpande
12-Jan-2023 05:11 PM
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अदिति झा
12-Jan-2023 04:18 PM
Nice 👍🏼
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